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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

अथवा
"मिश्रजी के निबन्धों में उनके व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।' सोदाहरण समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

निबन्ध हिन्दी साहित्य की एक अपेक्षतया आधुनिक विधा है। यही नहीं, निबन्धों को गद्य का श्रृंगार तक कहा जाता है ओर इसका कारण यह है कि इसमें निबन्धकार का व्यक्तित्व, उसकी भाषा, उसकी प्रतिभा का सर्वाधिक विकास परिलक्षित होता है। हिन्दी को आलोचक प्रवर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, "यदि गद्य कवियों या लेखकों या लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी हैं।" साहित्य की अन्य विधाओं और निबन्धों के बीच एक मुख्य अन्तर व्यक्तित्व की छाप होता है। सच पूछा जाए तो निबन्ध अपने लेखक का सच्चा साहित्यिक प्रतिनिधि होता है। एक विद्वान आलोचक के शब्दों में "निबन्ध से तात्पर्य सच्चे साहित्यिक निबन्धों से है, जिसमें लेखक अपने आपको प्रकट करता है, विषय तो केवल बहाना मात्र होता है।"

इस प्रकार निबंध की एक अन्यतम विशेषता निबन्धकार के व्यक्तित्व की छाप होती है और यह छाप निबन्ध की अंतर्वस्तु पर ही नहीं, उसकी अभिव्यक्ति पर भी होती है। कुछ शब्दों में कहा जाए तो निबन्ध में निबन्धकार का समूचा ज्ञान, विचार, आस्थाएँ, विश्वास और आदर्शों की सजीव अभिव्यक्ति होती है। इस दृष्टि से श्री विद्यानिवास मिश्र जी के निबंधों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि उनके प्रत्येक निबन्ध पर उनके व्यक्तित्व की महत्ता बराबर छायी रहती है। मिश्रजी आधुनिक हिन्दी साहित्य में एक समर्थ और सशक्त निबंधकार के रूप में दिखते हैं। संस्कृत के प्रकाण्ड पंण्डित होने के कारण उनके निबन्धों में एक विशिष्ट गरिमा के दर्शन भी होते हैं। इसके साथ ही मिश्र जी भारतीय लोकजीवन एवं लोकसंस्कृति के भी अध्येता रहें हैं। उन्होंने भारतीय जनजीवन को निकट से देखा है, अतः स्वभावतः उनके निबन्धों में "जहाँ एक ओर संस्कृत के शास्त्रीय वैभव का उज्जवल आलोक दिखाई देता है, वहाँ दूसरी ओर लोकजीवन और लोकसंस्कृति की चांदनी भी छिटकती हुई दृष्टिगोचर होती है।"

श्री विद्यानिवास मिश्र के निबंधों में व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मुख्यतः निम्न रूपों में मिलती है-

(1) आत्मप्रकाशन अर्थात् आत्मपरक अभिव्यक्ति,
(2) पाठकों के साथ संबंध स्थापन,
(3) वैयक्तिक राग-विरागों की अभिव्यक्ति.
(4) व्यक्तिगत आस्थाओं और आदर्शों की अभिव्यक्ति,
(5) भावुकता,
(6) चिन्तन की प्रमुखता,
(7) विचारों की स्पष्टता एवं ईमानदार अभिव्यक्ति तथा
(8) सहज सरलता और स्पष्टताः स्वच्छ प्रसन्नता।

श्री मिश्र के निबंधों में उनके व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति के इन विभिन्न रूपों का संक्षिप्त विवेचन निम्नानुसार है -

(1) आत्मप्रकाशन अर्थात् आत्मपरक अभिव्यक्ति - आत्मप्रकाशन अथवा आत्मपरक अभिव्यक्ति मिश्रजी के निबन्धों की अन्यतम विशेषता है। कदाचित इसी कारण उनके कई निबन्धों में ऐसे अनेक स्थल देखने में आते हैं जहाँ मिश्रजी की आत्मपरक अभिव्यक्तियाँ बहुत कुछ आत्म-विश्लेषणात्मक ढंग की बन पड़ी है। उदाहरण के लिए मिश्रजी के निबन्ध 'बसन्त आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं की निम्न पंक्तियाँ देखिए - " चैत की चाँदनी में चरने के लिए मन उन्मत्त नहीं होता। बस घरबार है और मैं हूँ, बसन्त की बेचैनी बड़ी बचकानी लगती हैं। या मैं बसन्त से डर रहा हूँ जैसे कोई अंधकार में श्मशान के पीपल की डाल से लटकी हुई किसी लाश से डरता हो। मैं डर रहा हूँ क्योंकि बसन्त मेरे दूह होने से प्रमाणित करने के लिए आ रहा है, मैं डर रहा हूँ क्योंकि बसन्त मेरे ऊपर पागलपन में चढ़ी हुई खीरे की बेल सरीखी मेरी प्रतिमा को झकझोर कर विलग कर देगा, उसे ढूह और हरियाली की लिपटन बरदाश्त नहीं है। नहीं,मैं बूढ़ा नहीं हुआ। बसन्त ही बूढ़ा चला है। मैं आधुनिकता का प्रवाचक कभी बूढ़ा नहीं हो सकता, बसन्त की प्रक्रिया में ही कोई व्यतिक्रम आ गया होगा। किसी दुष्यन्त ने अपनी विस्मृति की खीझ से यह डौंडी पिटवा दी होगी कि इस वर्ष मदनोत्सव नहीं मनाया जाएगा।"

(2) पाठकों के साथ सम्बन्ध स्थापन - मिश्रजी के निबन्धों में ऐसे अनेक स्थल आते हैं जहाँ लगता है कि निबंधकार और उनके पाठकों के मध्य सहज तादात्म्य स्थापित हो गया है। निश्चय ही ऐसे स्थलों पर वैचारिक बोझिलता नहीं रह पाती और पाठक निबंधकार की बात को सहज ही आत्मसात् कर लेता है। उदाहरण के लिए मिश्रजी के एक निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए "परम्परा शब्द धीरे-धीरे बुद्धिजीवी लोगों के बीच वर्जित होता जा रहा है। मैं समझता हूँ, यह एक खतरनाक स्थिति है। परम्परा का खण्डन एक अलग बात है क्योंकि उस खण्डन से ही परम्परा का विकास होता है, परन्तु परम्परा को नकारना एक दूसरी ही स्थिति है जो चिन्तन और सर्जन में खोखलेपन और परायेपन को जन्म देती है। आधुनिक भारतीय बुद्धिजीवी या तो परम्परा से ग्रस्त हैं या भगाने की कोशिश में परेशान वह परम्परा को स्वीकार करने में हिचकता है, इसीलिए सही परम्परा और गलत परम्परा के विवेचन के पछड़े में भी नहीं पड़ना चाहता। वह परम्परा को चूँकि जानना भी नहीं चाहता, इसलिए उसका जोरदार खण्डन भी नहीं कर पाता।"

(3) वैयाक्तिक राग-विरागों की अभिव्यक्ति - निबंधों में निबन्धकार की वैयक्तिकता की प्रतिष्ठा तभी हो पाती है जबकि उसका निजत्व उसके अपने राग-विरागों की भी अभिव्यक्ति हो सके। यद्यपि पाठक निबंधों का अध्ययन अपनी ज्ञान बुद्धि के लिए करता है फिर भी निबन्धकार के व्यक्तिगत राग- विरागों के माध्यम से वह अपने निबन्धकार के साथ एक गहरा तादात्म्य भी स्थापित कर लेता है। मिश्रजी के निबन्धों की एक अन्यतम विशेषता यह है कि उनमें किसी भी प्रकार की वैचारिक बोझिलता नहीं खलती, आरम्भ से अन्त तक पाठक को एक विचित्र प्रकार का अपनापन सा अनुभव होता रहता है, उसे ऐसा बराबर अनुभव होता रहता है कि वह किसी महान पंडित के विचार - प्रधान निबन्धों की भूलभुलैया में नही खोया है अपितु अपने एक गहरे दोस्त की रुचिपूर्ण बातें सुन और पढ़ रहा है। इस दृष्टि से मिश्रजी के निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए "मैं इसीलिए इस पर बल देता हूँ कि हमारे देश में जो कृत्रिम प्रकाश में हर चीज विलग दिखती है, आकाश सत्ताइस नक्षत्रों में विभक्त दिखता है, अपने कमरे का कोना भी अलग कमरा प्रतीत होता है, एक छोटी-सी कुर्सी की आड़ में पड़कर। इसका कारण है बुद्धिजीवी वर्ग के मूल्य बोध पर पर्दा पड़ गया है, इसका कारण है हममें से जो सुसंस्कृत होने का दावा करते हैं वे भूल गए हैं कि भाषा का संस्कार भाषा के साथ जीन से आता है। भाषा के साथ खिलवाड़ करने से नही आता। इसका कारण है हम भावनात्मक एकता की बात करते हैं, पर स्वयं भावना से अछूते हैं। देश को एक अविभाज्य और समग्र देखने वाली आँख तो थी हिन्दी, उसी में उंगली घुसेड़कर देश की एकता की रक्षा की बात की जा रही है।"

(4) वैयक्तिक आस्थाओं और आदर्शों की अभिव्यक्ति - निबंधकार की निजता के साथ उसकी आस्थाएँ और आदर्श सहज ही जुड़े रहते हैं अतः जब हम निबंधों में निबंधकारों के निजत्व की अभिव्यक्ति की बात करते हैं, तो हमारा आशय उसके व्यक्तिगत राग-विरागों, अभिरुचियों, आदि के साथ-साथ उसके आदर्श और आस्थाओं की अभिव्यक्ति से भी होता है। मिश्रजी के निबन्धों में भी उनके आदर्शों और आस्थाओं की सजीव अभिव्यक्ति हुई है। उदाहरण के लिए उनके निबन्धों के कतिपय प्रसंग देखिए

(1) सत्य के प्रति आस्था - "मैं भी मसाल लेकर सारे जंगल को एक साथ रोशन कर देता कितना भी अपरूप क्यों न हो, सत्य तो उदघाटित हो जाता। अभी तो कसमसाकर रह जाता हूँ। इन टूटे हुए दीयों से काम चलाओ और रह-रहकर आभास होता है कि यह अकेले जागने का कैसा दुरन्त अभिशाप है, जिस जागने का कोई अभिमान नहीं होता, केवल व्यर्थता की प्रतीति भर होती है क्योंकि इस जागरण में कोई मंत्र भी नहीं सधता, केवल अस्तित्व तिल-तिलकर गिरता जाता है।"

(2) परम्परा के प्रति आस्था - "आधुनिक बुद्धिजीवी की विडम्बना यह है कि वह या तो परम्परा से भयभीत है और सत्यनारायण कथा की मनौती मानकर उसके दायित्व से मुक्त होने की बात सोचता है वह परम्परा को इतना हेय समझता है कि बार-बार घर से रद्दी के रूप में उसे निकालकर ही स्वास्ति की सांस लेता है यदि वह कुछ अभिजात, अप्रतिबद्ध और अन्तर्राष्ट्रीय हुआ तो परम्परा को सजावट की चीज समझता है। वह यह मानने को तैयार नहीं है कि करोड़ों लोगों के सांझे के अनुभव के स्पन्दन में एक छन्द होता है और वहीं परम्परा है। परम्परा कोई सिद्धवस्तु नहीं है, वह प्रतिक्रिया है, जो कुछ मिट रही है और जो कुछ बन रही है।"

(3) राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति आस्था - "हिन्दी राष्ट्रभाषा किसी कानून से, किसी बहुमत से या किसी अनुचित दबाव से नहीं स्वाधीनता के यज्ञ में आहुति देने वाली प्रत्येक यजमान की श्रद्धा सें, उसके ऋत्विजों की श्रद्धा से और स्वाधीनता की आवश्यकता से बनी। हिन्दी को राष्ट्रभाषा भूगोल ने नहीं, इतिहास ने बनाया है। वह इतिहास हमसे काट दिया जाए तो हिन्दुस्तान नहीं रहेगा। हिन्दी को राष्ट्रभाषा नेताओं ने नहीं, नेताओं को नेता बनाने वाली उस भारतीय जनता ने बनाया जो सन्तों के सत्य की भाँति दूब बनकर बिंधी रही, जिसे कुचलकर भी कुचला नहीं जा सका, जिसे कोई भी आततायी उन्मीलित नहीं कर सका। उस खेतिहर जनता ने अपढ़ पर भीतर से संस्कृत जनता ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाया, उस जनता की आकांक्षा को व्यक्त करने के लिए, उसकी प्रतिष्ठा को सबसे बड़ी प्रतिष्ठा देने के लिए अहिन्दी -भाषी दूरदर्शी जननायकों ने हिन्दी के आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन का अंग बनाया।

(4) भावुकता - मिश्रजी के निबंधों की एक अन्यतम विशेषता यह है कि उनके विचारप्रधान निबन्धों में भी भावुकता का निर्वाह बराबर मिलता है। यही भावुकता उनके निबन्धों में एक विचित्र प्रकार का लालित्य, माधुर्य और सौकुमार्य भर देती है। कठिन से कठिन विषय का विवेचन भी वे ऐसी कुशलता के साथ करते हैं कि दुरुह विषय भी भावात्मकता का संस्पर्श पाकर सहज ही बोधगम्य बन जाते हैं। इस प्रयोजन के लिए मिश्रजी ने कहीं-कहीं कविता का प्रयोग भी किया है।

(5) चिन्तन की प्रमुखता - निबन्ध अनिवार्यतः चिन्तन को उबुद्ध करने के लिए होते हैं। मिश्रजी के निबन्धों में उनका विचारक का रूप अनेक स्थलों पर उभरकर आता है। चिन्तन के साथ गम्भीरता सहज ही जुड़ी रहती है। स्वभावतः मिश्रजी के निबन्धों में अनेक स्थलों पर चिन्तन की प्रधानता के दर्शन होते हैं। जैसे उनके निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए "पश्चिम में सौन्दर्य दृष्टि का केन्द्र ही स्थानच्युत हो गया है क्योंकि कला जीवन के समग्र भार को वहन करने में असमर्थ हो गयी है, कला की परिधि रूप जीवन प्रक्रिया की जटिलता ही अधिक गम्भीर प्रतीत होने लगी है। आज से पूर्व के संक्रमण युगों में कला के माध्यम में परिवर्तन हुआ, पर कला के प्रति दृष्टि में परिवर्तन नहीं हुआ था। आज दृष्टि ही बदल गई है, कला तृप्ति के लिए नहीं रहीं, अतर्पणीय जिजीविषा की तृषा और बढ़ाने के लिए नमकीन घोल का काम कर रही है।"

(6) विचारों की स्पष्टता एवं ईमानदार अभिव्यक्ति - मिश्रजी के निबन्धों की एक अन्यतम विशेषता यह है कि उनके विचारों की अभिव्यक्ति में स्पष्टता बराबर बनी रहती है। उन्हें जो कुछ भी कहना है अथवा जो भी मत व्यक्त करना है, उसमें वे एक अद्भुत निष्ठा और स्पष्टता का परिचय देते हैं। उनके चिन्तन में जो स्पष्टता है, उनकी अभिव्यक्ति में भी उसी स्पष्टता के दर्शन होते हैं। लाग-लपेट अथवा घुमा-फिराकर बात कहना मिश्रजी के स्वभाव के प्रतिकूल है। उन्हें जो कुछ कहना है, उसे वे बिना किसी संकोच अथवा रोक-टोक के कह देते हैं। उदाहरण के लिए उनके एक निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए "आज समुचे विश्व में पुरानी पीढ़ी और नयी पीढ़ी के बीच इतनी चौड़ी खाई उत्पन्न हो गई दीखती है कि जितनी कभी पहले इतिहास में नहीं दिखी। यों तो हर पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से भिन्न होती है और प्रत्येक संक्रमण युग की पीढ़ी विशेष रूप से, पर आज जो अन्तर है, वह चौड़ा होने के साथ-साथ बहुत गहरा भी है। इसीलिए पुरानी और नई, दोनों पीढ़ियों को यह अन्तर असमाधेय समस्या के रूप में भयावह व दुरन्त प्रतीत होता है। कला और साहित्य में इस प्रतीति का तीखापन सबसे पहले प्रकट हुआ है, असली और नकली दोनों रूपों में इस मानसिक दूरी ने एक अजीब तनाव और आशंका की सृष्टि की है।

 

(7) सहज, सरलता और स्पष्टता : स्वच्छ प्रसन्नता मिश्रजी के निबन्धों में जहाँ चिन्तन की गम्भीरता और पांडित्य का परिचय मिलता है वहाँ सर्वत्र एक अद्भुत सहजता, सरलता और स्पष्टता के भी दर्शन होते हैं। इस प्रकार उनके निबन्धों में आद्योपान्त एक प्रकार की स्वच्छ प्रसन्नता बराबर दिखती है। छोटे-छोटे और सरल से दीखने वाले वाक्यों में मिश्रजी ने विचारों का अक्षय भण्डार भर दिया है। उदाहरण के लिए मिश्रजी के निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए- "विश्वविद्यालयों का कितना धन-जन मुकदमें बाजी में पिछले दशक में लग रहा है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि प्रायः प्रत्येक विश्वविद्यालय में अब लगभग एक पूर्णकालिक परोपकार है, यद्यपि वह नियुक्त किसी दूसरे पद पर है और वकील की फीस भत्ते तथा अन्य मदों को लेकर बजट में स्वीकृत धनराशि से कई गुना खर्च प्रतिवर्ष हो रहा है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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